शनिवार, 15 सितंबर 2012

तो इसमें नाराज होनेवाली क्या बात है?

महमूद दरवेश की कविता ‘परिचय पत्र’ का अनुवाद, यहाँ शीर्षक बदलकर।


तो इसमें नाराज होनेवाली क्या बात है?

इसे रिकॉर्ड में दर्ज करो।
    मैं एक अरब हूँ
और मेरे पहचान पत्र का नम्बर है पचास हजार
मेरे आठ बच्चे हैं
और नौवाँ गर्मियों के बाद आनेवाला है।
तो इसमें नाराज होनेवाली क्या बात है?

इसे रिकॉर्ड में दर्ज करो।
मैं एक अरब हूँ
खदान में अपने साथियों के साथ करता हूँ कठोर मेहनत
मेरे आठ बच्चे हैं जिनके लिए चट्टानों से जूझता
कमाता हूँ रोटियाँ, कपड़े और किताबें
और नहीं माँगता तुम्हारे दरवाजे पर भीख,
न ही झुकता हूँ तुम्हारी चौखट पर।
तो इसमें नाराज होनेवाली क्या बात है?

इसे रिकॉर्ड में दर्ज करो।
मैं एक अरब हूँ।
मैं एक नाम हूँ बिना किसी उपाधि के,
सहनशीलता से रहता आया एक ऐसे देश में
जहाँ हर चीज गुस्से के भँवर में रहती है।
मेरी जड़ें खोद दी गईं
समय की उत्पत्ति से ही पहले
युगों-कल्पों की कोंपल फूटने से पहले ही,
चीड़ और जैतून के पेड़ों से भी पहले,
घास की पत्तियों के आने से भी पहले।

मेरे पिता किसान परिवार से थे
किसी कुलीन सामंती खानदान से नहीं।
और मेरे दादा भी एक किसान थे
बिना किसी महान वंशावली के।
मेरा घर दरबान की झौंपड़ी जैसा है
घास और बल्लियों से बना हुआ
क्या आप संतुष्ट हैं मेरे इस जीवन-स्तर से ?
मैं एक नाम हूँ बिना किसी उपनाम के।

इसे रिकॉर्ड में दर्ज करो।
मैं एक अरब हूँ।
मेरे बालों का रंगः गहरा काला।
आँखों का रंगः भूरा।
विशेष पहचान चिन्हः
मेरे माथे पर पगड़ी और उस पर दो काली डोरियाँ
छुओगे तो रगड़ खा जाओगे।
मेरा पताः
मैं आया हूँ एक दूर, विस्मृत कर दिए गए गाँव से
जिसकी गलियों का कोई नाम नहीं
और जिसके सभी आदमी जुते हुए हैं खेतों और खदानों में
            तो इसमें नाराज होने की क्या बात है?

इसे रिकॉर्ड में दर्ज करो।
मैं एक अरब हूँ।
तुमने मेरे पुरखों के बगीचों को छीन लिया
और वह जमीन जिसे मैं जोतता था
मैं और मेरे बच्चे जोतते थे उस जमीन को,
और तुमने हमारे लिए और मेरे बाल-बच्चों के लिए
इन पत्थरों के अलावा कुछ नहीं छोड़ा।
क्या तुम्हारी सरकार इन्हें भी कब्जे में ले लेगी,
जैसी कि घोषणा की जा रही है?

बहरहाल!
इसे पहले पन्ने पर सबसे ऊपर दर्ज करोः
मैं लोगों से नफरत नहीं करता,
न ही किसी की संपत्ति पर करता हूँ अतिक्रमण
फिर भी, यदि मैं भूखा रहूँगा
तो खा जाऊँगा अपने लुटेरे का गोश्त

खबरदार, मेरी भूख से खबरदार
और मेरे क्रोध से!
000000

‘द विन्टेज बुक ऑव कंटेप्रेरी वर्ल्‍ड पोएट्री’ से, डेनिस जॉन्‍सन-डेवीज के अंग्रेजी अनुवाद के आधार पर हिन्दी में अनूदित। प्रकाशक- विन्टेज बुक्स, न्यूयॉर्क।

4 टिप्‍पणियां:

Ankita Chauhan ने कहा…

words are quite revolting...translation also captures the essence of the poetry...a good read.. thank you.

Rangnath Singh ने कहा…

अनुवाद अच्छा लगा....कविता तो छूने वाली है ही

Arpita ने कहा…

अदभुत कविता है !!!!
क्या संयोग है कि कल ही इस कविता के कुछ अंश मैंने महमूद दरवेश के इंटरव्यू में पढ़े तो सहज ही इसे पूरी पढ़ने की इच्छा हुई और आज आप के अनुवाद में मिली....शुक्रिया आपका !!!!!!

Arpita ने कहा…

अदभुत कविता है !!!!
क्या संयोग है कि कल ही इस कविता के कुछ अंश मैंने महमूद दरवेश के इंटरव्यू में पढ़े तो सहज ही इसे पूरी पढ़ने की इच्छा हुई और आज आप के अनुवाद में मिली....शुक्रिया आपका !!!!!!